कितनी और समीक्षा होगी?
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??


आगे आगे तुम चलते हो
आँख मूँद मैं चलती पीछे
कदम से मेरे कदम मिला कर
कब तुम मेरे संग चलोगे??


कितनी और परीक्षा लोगे?
कितनी और समीक्षा होगी?


शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??


मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??


कितनी और समीक्षा होगी??
कितनी और परीक्षा होगी??

(एक मित्र द्वारा जोड़ी गयी कुछ पंक्तियाँ )
युग युग से अग्नि पर चली हूँ
रेखाओ से मैं ही बंधी हूँ
संग हर पल हर क्षण कब तुम रहोगे
सीमाओ से परे कब तुम मुझे करोगे??

14 comments:

Pradhuman Singh Kushwah said...

Great yaar
simply you rocks :)

अभिषेक मिश्र said...

महत्वपूर्ण प्रश्न के साथ सशक्त शुरुआत. स्वागत.

ललितमोहन त्रिवेदी said...

नारी मन की गहन कंदराओं से उठते प्रश्नों को रेखांकित करती एक सशक्त रचना ! बहुत खूब !आपकी ओल्ड पोस्ट भी पढ़ी !अच्छा लिखती हैं आप ! लेखन में निरंतरता बनाये रखें !

प्रकाश गोविंद said...

बहुत ही मासूमियत भरी रचना

सार्थक लेखन !

यह कविता अपने आप में
प्रश्न और उत्तर भी
साथ ही सुझाव भी !

मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !!!

[इस वर्ड वैरिफिकेशन की प्रक्रिया को हटा दें,
इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी
होती है ! ]

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??

बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है.बहुत ही ज्वलंत प्रश्न है.

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahut hee sahaj,saral aur sundar shabdon men apne apnee bhavnayen likhi hain.badhai.kabhee mere blog par ayen.
Poonam

bijnior district said...

बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता। बधाई
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे ।अच्छा लिखे। हजारों शुभकामनांए।

दिगम्बर नासवा said...

मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??

बहुत सुंदर, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है सशक्त रचना
समाज से जवाब मांगती, भाव पूर्ण कविता

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

इस रचना ने तो दिल को हिला दिया.......गनीमत है कि इस मामले में मैं शुक्रगुजार हूँ.....और पहले पति ना होकर मित्र ही हूँ........जो लोग नहीं हैं वो इस बाबत गम्भ्र्र्ता से सोचें.........वरना...............!!

Sanjay Grover said...

Pariksha ki achchhi Samiksha ki hai aapne.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

क्यों डरे ज़िन्दगी में क्या होगा?? कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा......jis kisi shaayar ki ye pankyiyaan hain....use salaam.....haan jagjit da ne ise gaaya bhi to khoob hai....!!

Unknown said...

ur lines are too gooood yaar
keep it up.....keep writting ....plz welcome to my blog .....some thing, some one, sometime etc.

Jai Ho Magalmay Ho

Anonymous said...

रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति

Pradeep Kumar said...

कितनी और समीक्षा होगी?
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??
bahut achchhi kavita hai . badhai

apne naam ke anuroop hi kavita likh kar use khoob charitaarth kiya hai .

Post a Comment