कितनी और समीक्षा होगी?
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??
आगे आगे तुम चलते हो
आँख मूँद मैं चलती पीछे
कदम से मेरे कदम मिला कर
कब तुम मेरे संग चलोगे??
कितनी और परीक्षा लोगे?
कितनी और समीक्षा होगी?
शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??
मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??
कितनी और समीक्षा होगी??
कितनी और परीक्षा होगी??
(एक मित्र द्वारा जोड़ी गयी कुछ पंक्तियाँ )
युग युग से अग्नि पर चली हूँ
रेखाओ से मैं ही बंधी हूँ
संग हर पल हर क्षण कब तुम रहोगे
सीमाओ से परे कब तुम मुझे करोगे??
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??
आगे आगे तुम चलते हो
आँख मूँद मैं चलती पीछे
कदम से मेरे कदम मिला कर
कब तुम मेरे संग चलोगे??
कितनी और परीक्षा लोगे?
कितनी और समीक्षा होगी?
शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??
मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??
कितनी और समीक्षा होगी??
कितनी और परीक्षा होगी??
(एक मित्र द्वारा जोड़ी गयी कुछ पंक्तियाँ )
युग युग से अग्नि पर चली हूँ
रेखाओ से मैं ही बंधी हूँ
संग हर पल हर क्षण कब तुम रहोगे
सीमाओ से परे कब तुम मुझे करोगे??
14 comments:
Great yaar
simply you rocks :)
महत्वपूर्ण प्रश्न के साथ सशक्त शुरुआत. स्वागत.
नारी मन की गहन कंदराओं से उठते प्रश्नों को रेखांकित करती एक सशक्त रचना ! बहुत खूब !आपकी ओल्ड पोस्ट भी पढ़ी !अच्छा लिखती हैं आप ! लेखन में निरंतरता बनाये रखें !
बहुत ही मासूमियत भरी रचना
सार्थक लेखन !
यह कविता अपने आप में
प्रश्न और उत्तर भी
साथ ही सुझाव भी !
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !!!
[इस वर्ड वैरिफिकेशन की प्रक्रिया को हटा दें,
इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी
होती है ! ]
शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है.बहुत ही ज्वलंत प्रश्न है.
Bahut hee sahaj,saral aur sundar shabdon men apne apnee bhavnayen likhi hain.badhai.kabhee mere blog par ayen.
Poonam
बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता। बधाई
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे ।अच्छा लिखे। हजारों शुभकामनांए।
मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??
बहुत सुंदर, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है सशक्त रचना
समाज से जवाब मांगती, भाव पूर्ण कविता
इस रचना ने तो दिल को हिला दिया.......गनीमत है कि इस मामले में मैं शुक्रगुजार हूँ.....और पहले पति ना होकर मित्र ही हूँ........जो लोग नहीं हैं वो इस बाबत गम्भ्र्र्ता से सोचें.........वरना...............!!
Pariksha ki achchhi Samiksha ki hai aapne.
क्यों डरे ज़िन्दगी में क्या होगा?? कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा......jis kisi shaayar ki ye pankyiyaan hain....use salaam.....haan jagjit da ne ise gaaya bhi to khoob hai....!!
ur lines are too gooood yaar
keep it up.....keep writting ....plz welcome to my blog .....some thing, some one, sometime etc.
Jai Ho Magalmay Ho
रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
कितनी और समीक्षा होगी?
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??
bahut achchhi kavita hai . badhai
apne naam ke anuroop hi kavita likh kar use khoob charitaarth kiya hai .
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