गागर में सागर समा गया, सबकी पलकों में जल खरा
पीड़ा कह मत बदनाम करो यह पावन रस अमृत धारा
जिस पल अभिषेक हुआ दुख का मन के आँगन में आंसू से
अंततः सलिला से प्रकटी वह निश्छल गंगा की धारा..
इन्टरनेट पर यंहा वंहा भटकते हुए... कभी कभी कुछ कविताये. कुछ छंद .. कुछ शायरियां जो भी पसदं आई.. या कुछ किताबो या किसी से सुनी हुयी.. जो भी पसंद आई.. उनका एक संकलन है यंहा.. ताकि आप सभी इसे पढ़ सके.. और इन प्यारी पंक्तियों का रस ले सके..
1 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति .........
बहुत अच्छा लिखा है, मधुर है आपका लेखन
जिस पल अभिषेक हुआ दुख का मन के आँगन में आंसू से
अंततः सलिला से प्रकटी वह निश्छल गंगा की धारा..
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