बहुत दिन से तेरी याद भी ना आई और भूल गए हो तुझे ऐसा भी नहीं.....
मैं खुशबुओं सी बिखरती रही तुम्हारे लिए
हर आईने में संवरती रही तुम्हारे लिए
मैं खुशबुओं.....
तुम्हारा साथ रहे ज़िन्दगी कि राहों में
कदम-कदम पे ठहरती रही तुम्हारे लिए
मैं खुशबुओं...
तुम्ही को माँगा है सजदो में उम्र भर मैंने
खुदा को याद भी , करती रही तुम्हारे लिए
हर आईने में....
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कितनी तस्कीन है वाबस्ता तेरे नाम के साथ
नींद काँटों पर भी आ जाती है आराम के साथ
कितनी...
ज़िन्दगी खा न सकी गर्दिशे-दौरा से शिकस्त
मौत भी आये तो आये तेरे पैगाम के साथ
कितनी...
और बढ़ जाती है इस नाम से बेताब ये दिल
दिल को तस्कीन भी मिलती है उसी नाम के साथ
कितनी.. नींद...
*तस्कीन = आराम
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1 comments:
kya likhu lazwaab hai
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