कितनी और समीक्षा होगी?
कितनी और परीक्षा लोगे?
सदियों से तुम पति बने हो
कब तुम मेरे मित्र बनोगे??


आगे आगे तुम चलते हो
आँख मूँद मैं चलती पीछे
कदम से मेरे कदम मिला कर
कब तुम मेरे संग चलोगे??


कितनी और परीक्षा लोगे?
कितनी और समीक्षा होगी?


शब्दों को तुम समझ ना पाते
मौन के भी तुम अर्थ लगाते
मेरे मन की बात समझ के
कब मेरी भाषा समझोगे??


मेरा भी अपना एक मन है
देह के बाहर भी जीवन है
अपनी कैद में रख कर मुझको
कितना और कब तक परखोगे??


कितनी और समीक्षा होगी??
कितनी और परीक्षा होगी??

(एक मित्र द्वारा जोड़ी गयी कुछ पंक्तियाँ )
युग युग से अग्नि पर चली हूँ
रेखाओ से मैं ही बंधी हूँ
संग हर पल हर क्षण कब तुम रहोगे
सीमाओ से परे कब तुम मुझे करोगे??