दुःख अपने सबको बतलाना
सच पूछो कोई खेल नहीं ...
गैर के दिल में दर्द जगाना
सच पूछो कोई खेल नहीं ..
अक्सर दिल के भावो की
चेहरा चुगली कर देता है ..
ना ना करके प्यार जताना
सच पूछो कोई खेल नहीं

माना गगन से आदित्य आज दूर है ....

पर छितिज़ में आगमन के चिह्न जरुर है .....

दूरिया हो सकती है मात्र दृष्टि भ्रम...

पर स्मृतियों में हमारा साथ जरुर है ...

तुम्हारे नेह को मैंने लगा दिया चन्दन
तुम्हारे स्नेह को मैंने बना दिया बन्धन
तुम्हारी यादो को मैंने ओड़ा और बिछाया है
इस तरह प्रीत का गीत मैंने गाया है.....


वो अपना हो या पराया, अच्छा लगता है ..
हर पल उसके साथ बिताना, अच्छा लगता है ...
आँखों में उसका ही चेहरा, जेहन में उसकी ही बातें ...
दिल में उसके ख्वाब सजाना, अच्छा लगता है ...
ढूँढ़ते रहते हैं तारों में उसकी परछाई को ....
याद में उसकी खुद को जगाना, अच्छा लगता है ...
मत देखो कोई शक्श गुनेहगार कितना है
ये देखो आपके साथ वफादार कितना है
ये मत सोचो उसे कुछ लोगो से नफरत है
ये देखो उसे आपसे प्यार कितना है ???

अपना मिलना तो सितारों के यंहा से तय था
चाँद अपना है बहारों के यंहा से तय था
मिल कर ख्वाबों को हकीकत में बदलना है
इस रिश्ते को मोहब्बत में बदलना तो तय था..
कुछ तो जीते हैं जन्नत कि तमन्ना ले कर...
कुछ तमन्नाएँ जीना सिखा देती हैं...
हम किस तमन्ना के सहारे जियें ??
ये ज़िन्दगी रोज एक तमन्ना बढा देती है...
सब थे खफा तो निभाया तुमने..
हालात हैं अब ठीक तो भुलाया तुमने ..
सुनेगा जो वो यही कहेगा अब..
क्यों पत्थर शीशे पर गिराया तुमने..
जानती हूँ तुम्हे गुस्सा तो आया होगा
कुछ देर बाद दिल को करार आया होगा
जब सोचा होगा मन में तस्सली से तो
मेरे गुस्से पर भी तुम्हे प्यार आया होगा

आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम,ख्वाब बन के ऐसे क्यों सताते हो तुम…

गमों को भुलाने का एक सहारा ही सही,मेरे मुरझाए हुए दिल को बहलाते हो तुम…

दूर तक बह जाते है जज़्बात तन्हा दिल के,हसरतों के क़दमों से लिपट जाते हो तुम…

शीश महल की तरह लगते हो मुझको तो,खंडहर हुई खव्हाईशोँ को बसाते हो तुम…

यादों की तरह क़ैद रहना मेरी आँखों मे,आँसू बन कर पलकों पे चले आते हो तुम…

तुम्हारी अधूरी सी आस मे दिल ज़िँदा तो है साँस लेने की मुझको वजह दे जाते हो तुम…

सफर में मिला था वो मुझे इक मोड़ पर
फ़िर बढ़ चला था में उसे वहीं छोड़ कर
लेकिन अब उस मोड़ पर लौटने का मन करता है
ये मुमकिन नही फ़िर भी क्यों ये दिल मचलता है
अब तो ये उम्मीद है, आए फ़िर मोड़ कोई वैसा
वो मिल जाएं फ़िर किसी दिन यूंही
उस मोड़ के इन्तजार में जाने कितने मोड़ गए गुजर
मिले कई मगर, हमसफ़र मिला न उस जैसा


प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या,
मन के कल्पित भावो से
औरों को भ्रम में लाना क्या
ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या,
प्रेम हार पहनना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या
त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमे स्वार्थ बताना क्या,
देकर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या
Harivansh rai bachchan

बहुत दिन से तेरी याद भी ना आई और भूल गए हो तुझे ऐसा भी नहीं.....

मैं खुशबुओं सी बिखरती रही तुम्हारे लिए
हर आईने में संवरती रही तुम्हारे लिए
मैं खुशबुओं.....


तुम्हारा साथ रहे ज़िन्दगी कि राहों में
कदम-कदम पे ठहरती रही तुम्हारे लिए
मैं खुशबुओं...

तुम्ही को माँगा है सजदो में उम्र भर मैंने
खुदा को याद भी , करती रही तुम्हारे लिए
हर आईने में....


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कितनी तस्कीन है वाबस्ता तेरे नाम के साथ
नींद काँटों पर भी आ जाती है आराम के साथ
कितनी...


ज़िन्दगी खा न सकी गर्दिशे-दौरा से शिकस्त
मौत भी आये तो आये तेरे पैगाम के साथ
कितनी...


और बढ़ जाती है इस नाम से बेताब ये दिल
दिल को तस्कीन भी मिलती है उसी नाम के साथ
कितनी.. नींद...


*तस्कीन = आराम

ये कैसी आग बरसती है आसमानों से
परिंदे भी लौट कर आने लगे उडानो से
कोई मुलाकात करवा दे मेरी मुझ से
मैंने देखा नहीं है खुद को जमानों से

इंतज़ार तो करे जब वो आये भी
भूल जाये हम छोडे जो मेरे साये भी.

कल सुबह ये ज़िन्दगी जो ना रही
तमाशा देखेंगे अपने और पराये भी.


वो गैर हैं तो गैर बनना भी सीख लें
यादों में आ कर बार बार आजमायें भी.


कहता है दुनिया को छोड़ देगा
हमे मुड के देखे बार बार, घबराये भी.


ये कैसा खुदा है मेरे दोस्तों
खुद ही लगाये आग, खुद ही बुझाये भी.


शिकवा भी तो क्या करें हम किसी से
खोया एक हमसफर तो लाखों रहनुमा पाए भी .