गागर में सागर समा गया, सबकी पलकों में जल खरा
पीड़ा कह मत बदनाम करो यह पावन रस अमृत धारा
जिस पल अभिषेक हुआ दुख का मन के आँगन में आंसू से
अंततः सलिला से प्रकटी वह निश्छल गंगा की धारा..

1 comments:

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति .........
बहुत अच्छा लिखा है, मधुर है आपका लेखन

जिस पल अभिषेक हुआ दुख का मन के आँगन में आंसू से
अंततः सलिला से प्रकटी वह निश्छल गंगा की धारा..

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